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पिता-पुत्र का रिश्ता : श्रद्धा, संस्कार और सेवा की मिसाल

स्व. बजरंग प्रसाद मित्तल की मूर्ति अनावरण पर पुत्रों और भाइयों ने दी सच्ची श्रद्धांजलि

जब कोई व्यक्ति समाज में अपने कर्मों और सेवा से अमिट छाप छोड़ जाता है, तो उसका स्मरण केवल स्मारक बनाकर नहीं, बल्कि उसके आदर्शों को आगे बढ़ाकर किया जाता है। पुरुषोत्तमपुरा स्थित श्री जगन्नाथ गौशाला में आयोजित स्वर्गीय बजरंग प्रसाद मित्तल की मूर्ति अनावरण समारोह इस बात का जीवंत उदाहरण बना।

कार्यक्रम में जब उनके पुत्रों और भाइयों ने श्रद्धा और भावनाओं के साथ अपने पिता की मूर्ति का अनावरण करवाया, तो यह केवल एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि पिता-पुत्र के अटूट रिश्ते और संस्कारों की विरासत का सशक्त प्रतीक बन गया।

स्व. बजरंग प्रसाद मित्तल ने जीवन भर गौसेवा, समाजसेवा और मानवता को अपना धर्म माना। उन्होंने जिस श्री जगन्नाथ गौशाला की स्थापना अपने हाथों से की थी, उसी स्थान पर उनकी स्मृति में मूर्ति स्थापित होना उनके जीवन की तपस्या को समाज के सामने अमर करने जैसा है।

पुत्रों और भाइयों ने अपने पिता और परिवार के प्रति प्रेम और आदर को केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म से सिद्ध किया। गौशाला में नई टीन शेड का निर्माण, अन्नकूट सेवा का पुनः प्रारंभ और मूर्ति स्थापना — ये सब उस सेवा परंपरा का हिस्सा हैं जो स्व. मित्तल ने जीवनभर अपनाई थी। यह आयोजन मित्तल परिवार की ओर से न केवल श्रद्धांजलि था, बल्कि समाज के लिए यह संदेश भी कि “संस्कार कभी समाप्त नहीं होते, वे अगली पीढ़ियों में जीवित रहते हैं।”

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे विधायक हंसराज पटेल ने कहा कि “गौसेवा सबसे बड़ा पुण्य कार्य है, और मित्तल परिवार ने इस दिशा में जो उदाहरण प्रस्तुत किया है, वह पूरे समाज के लिए प्रेरणादायक है।”

पूरे समारोह के दौरान वातावरण में भक्ति, भाव और अपनापन का सुंदर संगम देखने को मिला। पिता की स्मृति में स्थापित वह मूर्ति केवल संगमरमर का आकार नहीं, बल्कि वर्षों की मेहनत, आस्था और परंपरा का जीवंत प्रतीक बन गई।

पिता का संस्कार तब पूर्ण होता है जब पुत्र उनके अधूरे कार्यों को पूरा करे। स्व. बजरंग प्रसाद मित्तल की याद में हुआ यह आयोजन यही संदेश देता है — कि सेवा, श्रद्धा और संस्कार की यह ज्योति आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करती रहेगी।

SEETARAM GUPTA (KOTPUTLI)